A language buddy sent a link to a Hindi poem used as a song in the Indian movie Silsila.
You can see a clip here on YouTube. The Hindi is
Main Aur Meri Tanhai (मैं और मेरी तन्हाई) Song by Jagjit Singh
आवारा हैं गलियों में मैं और मेरी तन्हाई
जाएँ तो कहाँ जाएँ
जाएँ तो कहाँ जाएँ
हर मोड़ पे रुस्वाई
मैं और मेरी तन्हाई
मैं और मेरी तनहाई
ये फूल से चेहरे हैं हँसते हुए गुलदस्ते
कोई भी नहीं अपना बेगाने हैं सब रस्ते
राहें हैं तमाशाई राही भी तमाशाई
मैं और मेरी तन्हाई
मैं और मेरी तनहाई
अरमान सुलगते हैं सीने में चिता जैसे
क़ातिल नज़र आती है दुनिया की हवा जैसे
रोती है मेरे दिल पर बजती हुई शहनाई
मैं और मेरी तन्हाई
मैं और मेरी तनहाई
आकाश के माथे पर तारों का चराग़ां है
पहलू में मगर मेरे ज़ख्मों का गुलिस्तां है
आँखों से लहू टपका दामन में बहार आई
मैं और मेरी तन्हाई
मैं और मेरी तन्हाई
मैं और मेरी तन्हाई
This inspired me to adapt its words and sentiments into my own poem -
Where should we go my loneliness and I?
fated now to wander street after street
where faces smile as if handing a bouquet of flowers in welcome.
But this is not our home , everything and everyone feels a stranger looking at
us in judgement
while the mournful cries of my heart are like a piper's funeral lament.
Stars may dance on in the sky
but my loneliness flowers as wounds as bloodied tears stain my face.
(C) Sheila Ash, 2024
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